Pradushan Par Nibandh (Pradushan Ke Karan Aur Prakar)

प्रदूषण की समस्या व समाधान निबंध :-

रूपरेखा – प्रस्तावना

  • प्रदूषण का अर्थ
  •  प्रदूषण के प्रकार                                        
  •  प्रदूषण से हानियां
  •  प्रदूषण की समस्या का समाधान
  • उपसंहार

प्रस्तावना –
हमारे सौर मंडल एवं धरती के चारों ओर के परिवेश को पर्यावरण कहते हैं। जो सभी जीव-जाति के विकास, जीवन और मृत्यु को प्रभावित करता है। आधुनिकीकरण के कारण एक समस्या उत्पन्न हो गई है, जिससे प्रदूषण की समस्या कहते हैं। Pradushan Par (Pradushan Ke Karan Aur Prakar) प्रदुषण पर आजकल सभी देशों का ध्यान केंद्रित है। मानव क्रियाकलापों के कारण जल, वायु, जंगल, मिट्टी आदि सबकुछ प्रदूषित हो चुका है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण का महत्व बताया जाना चाहिए क्योंकि यही हमारे अस्तित्व का आधार है। यदि हमने इस असंतुलन को दूर नहीं किया तो आने वाली पीढ़ियां खराब जीवन जीने को विवश होंगी ,और पता नहीं तब मानव जीवन होगा भी या नहीं।

प्रदूषण का अर्थ-
पर्यावरण की प्राकृतिक संरचना एवं संतुलन में उत्पन्न अवांछनीय परिवर्तन को प्रदूषण कहते हैं। प्रकृति के द्वारा प्रदान किया गया पर्यावरण जीव धारियों के अनुकूल होता है।
जब वातावरण में कुछ हानिकारक घटक आ जाते हैं, तो वह वातावरण का संतुलन खराब कर देते हैं। यह गंदा वातावरण जीव धारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। इस प्रकार वातावरण के दूषित हो जाने को ही प्रदूषण कहते हैं।

प्रदूषण के प्रकार –
आज के वातावरण में प्रदूषण कई रूपों में दिखाएं देता है जैसे

1.वायु प्रदूषण,
2.जल प्रदूषण,
3.ध्वनि प्रदूषण,
4.मृदा प्रदूषण आदि।

1.वायु प्रदूषण:-
वायु जीवन का अनिवार्य स्रोत है। प्रत्येक प्राणी को स्वस्थ रूप से जीने के लिए शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है इसलिए वायुमंडल में शुद्ध वायु अर्थात ऑक्सीजन का विशेष अनुपात में होना आवश्यक है। जंतु सास द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड निकालते हैं और पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। इससे वायुमंडल में शुद्धता बनी रहती है आजकल वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस का संतुलन बिगड़ गया है और वायु अनेक हानिकारक गैसों से प्रदूषित हो गया है इसे ही वायु प्रदूषण कहते हैं।

2.जल प्रदूषण –
जल में पाए जाने वाले आवश्यक तत्व में होने वाली अवांछनीय परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता है। जल को जीवन कहा जाता है इसके बिना जीव जंतु और पेड़ पौधे का भी अस्तित्व नहीं है। फिर भी बड़े बड़े नगरों के गंदे नाले और सीवर नदियों के जल में आकर मिला दिए जाते हैं। कारखानों का सारा अपशिष्ट कर नदियों के जल में आकर मिलता है। इससे जल प्रदूषित हो जाता है और उसे से भयानक बीमारियां उत्पन्न हो रही है जिससे लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है।

3.ध्वनि प्रदूषण –
आवश्यकता से अधिक ध्वनि का होना ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण आज कि नई समस्या है। मोटर, कार, ट्रैक्टर, जेट विमान, कारखानों के सायरन, मशीनें तथा लाउडस्पीकर ध्वनि के संतुलन को बिगाड़ कर ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति, तीव्र क्रोध, अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं।

4. मृदा प्रदूषण –
मिट्टी में होने वाले प्रदूषण को मृदा प्रदूषण कहते हैं। यह मुख्यतः कृषि में अत्यधिक रोगनाशी, कीटनाशी तथा शकनाशी रसायनों का उपयोग करने पर मृदा प्रदूषण होता है इसी के साथ उससे जल प्रदूषण भी हो जाता है। मृदा प्रदूषण होने पर उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। फसलों एवं वनस्पतियों का विकास कम हो जाता है। मृदा प्रदूषण के कारण सूक्ष्म जीव, बैक्टीरिया आदि की मृत्यु हो जाती है। जिससे मिट्टी की गुणवत्ता खत्म हो जाती है।

प्रदूषण से हानियां –
बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिक करण ने प्रदूषण की समस्या पैदा कर दी है। कारखानों के धुए से, विषैले कचरे के बहाव से तथा जहरीली गैसों के रिसाव से आज मानव जीवन समस्या ग्रस्त हो गया है। इस प्रदूषण से मनुष्य जानलेवा बीमारियों का शिकार हो रहा है। कोई अपंग होता है तो कोई बहरा, किसी की देखने की शक्ति नष्ट हो जाती है तो किसी का जीवन। विविध प्रकार की शारीरिक विकृति या मानसिक कमजोरी, असाध्य कैंसर जैसे रोगों का मूल कारण विषैला वातावरण ही है।

प्रदूषण की समस्या का समाधान-
वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए वृक्षारोपण करना चाहिए। दूसरी ओर वृक्षों के अधिक कटाव पर भी रोक लगाई जानी चाहिए। कारखाने और मशीनें लगाने की अनुमति उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो औद्योगिक कचरे और मशीनों के धुए को बाहर निकालने की समुचित व्यवस्था कर सकें। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाए जाने चाहिए तथा सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकर ओ आदि के प्रयोग पर रोक लगानी चाहिए। प्रदूषण से पर्यावरण को बचाने के लिए पेड़ों की कम से कम कटाई की जानी चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण के लिए सरकार को उचित कदम उठाने होंगे और इसके विरुद्ध नए कानून जारी करने होंगे। हर मनुष्य को कूड़े के ढेर और गंदगी के आदि कोजल या जलाशय में नहीं डालना चाहिए। मनुष्य को कोयला और पेट्रोलियम जैसे उत्पादों का बहुत कम प्रयोग करना चाहिए और जितना हो सके प्रदूषण से रहित विकल्पों को अपनाना चाहिए। मनुष्य को सौर ऊर्जा, सीएनजी, वायु ऊर्जा, बायोगैस, रसोई गैस, पन बिजली का अधिक प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण को कम करने में बहुत सहायता मिलती है। नदियों के जल को कचरे से बचाना चाहिए और पानी को रीसाइक्लिंग की सहायता से पीने योग्य बनाना चाहिए। प्लास्टिक के बैग का कम प्रयोग करना चाहिए और जिन्हें रिसाइकल किया जा सके उनका प्रयोग अधिक करना चाहिए। प्रदूषण को खत्म करने के लिए कानूनों और नियमों का पालन करना चाहिए।

उपसंहार-
भारत सरकार प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरुक है। उन्होंने 1974 ईस्वी में ‘जल प्रदूषण निवारण अधिनियम’ लागू किया था। इसके अंतर्गत एक ‘केंद्रीय बोर्ड’ तथा प्रदेशों में ‘प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड’ गठित किए गए है। इसी प्रकार नए उद्योगों को लाइसेंस देने और वनों की कटाई रोकने की दिशा में कठोर नियम बनाए गए हैं। इस बात के भी प्रयास किए जा रहे हैं कि नए वन -क्षेत्र बनाए जाए और जन -सामान्य को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जाए। न्यायालय द्वारा फैलाने वाले उद्योगों को महानगरों से बाहर ले जाने के आदेश दिए गए हैं। यदि जनता भी अपने ढंग से इन कार्यक्रमों में सक्रिय सहयोग दें और यह संकल्प ले कि जीवन में आने वाले प्रत्येक शुभ अवसर पर कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाएंगे तो निश्चित ही हम प्रदूषण के दोस्त परिणामों से बच सकेंगे और आने वाली पीढ़ियों को भी इसकी काली छाया से बचाने में समर्थ हो सकेंगे।

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